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The Train... beings death 19



 जैसे-जैसे गौतम उस किताब को पढ़ता जा रहा था.. गौतम के सारे वहम साफ होते जा रहे थे। अब गौतम को समझ में आ गया था कि ऐसा उस पुस्तक में क्या था.. जिसकी वजह से सभी लोग उसी पुस्तक को इतनी व्याकुलता से ढूंढ रहे थे। गौतम ने पूरी पुस्तक पढ़ने के बाद अच्छे से छुपा कर रख दी थी।


 वो किताब तंत्र मंत्र की एक बहुत ही पुरानी और दुर्लभ पुस्तक थी.. जिसमें बहुत से गूढ़ रहस्य, प्रयोग और अत्यंत गोपनीय जानकारियां थी। उसे पढ़ते ही गौतम समझ गया था कि उस किताब को अपने पास रखना सुरक्षित नहीं होगा। फिर भी गौतम उस किताब का मोह छोड़ ही नहीं पा रहा था। उसमें लिखी हुई बातों, जानकारियों और प्रयोगों को कर के उनमें लिखी शक्तियों का परीक्षण करने की इच्छा गौतम के मन में पैदा हो गई थी। 


किताब को ज्यादा दिन अपने पास रखना भी सुरक्षित नहीं था। आज नहीं तो कल उसके पिता जो गुरुकुल में आचार्य थे.. उनके हाथ ये पुस्तक लग सकती थी। गौतम ने बहुत सोचा पर किताब अपने पास रखने का कोई रास्ता नज़र ही नहीं आ रहा था। जब तक वो पुस्तक गुरुकुल में वापस नहीं मिल जाती तब तक सभी बहुत ही ज्यादा चौकन्ने रहने वाले थे। ये भी हो सकता था कि आचार्यों के घरों की भी जांच पड़ताल शुरू कर दी जाए। अगर ऐसा होगा तो गौतम की शक्ति परीक्षण की इच्छा मन की मन में ही धरी रह जाएगी।


गौतम ने काफी सोच-विचार के बाद उस दुर्लभ पुस्तक की नकल करने की ठान ली। दिन रात एक कर के गौतम ने अगले दो दिनों में उस पुस्तक की नकल तैयार कर ली थी। बस अब किसी भी तरह बिना किसी की नजर में आए.. गौतम को वो किताब वापस पुस्तकालय में पहुंचानी थी। पुस्तक को वापस पुस्तकालय में पहुंचाना.. वो भी इस तरह कि लगे कि पुस्तक यहां से कहीं गई ही नहीं थी.. एक बहुत ही मुश्किल काम था। साथ ही पकड़े जाने का और पकड़े जाने पर मार पड़ने के साथ-साथ गुरुकुल से निकाले जाने का भी डर था।


इस सब के लिए गौतम ने शनिवार का दिन तय किया.. जोकि दो दिन बाद था। प्रत्येक शनिवार को गुरुकुल में विशेष पूजा और हवन होते थे.. जिसमें प्रत्येक आचार्य, प्रधानाचार्य, विद्यार्थियों के साथ-साथ सभी कर्मचारियों की उपस्थिति भी अनिवार्य थी। हवन लगभग 2 घण्टे चलता था। इतना समय पुस्तक को उसकी जगह पहुंचाने के लिए पर्याप्त था। गौतम ने अपनी योजना को अच्छे से एक और बार सोच लिया था और योजना में होने वाली गलतियों और कमियों के बारे में भी दो बार विचार कर लिया था। हर चीज़ अच्छे से तैयार कर ली गई थी।


गौतम को बस शनिवार का इंतजार था.. जब वो पुस्तक को उसकी जगह पहुँचा दे.. फिर आराम से उस किताब में लिखी विधियों का प्रयोग कर सके। अभी तक गौतम ने अपने दोस्तों को भी उस पुस्तक के अपने पास होने के बारे में नहीं बताया था। सब कुछ बताने के लिए गौतम सही समय की प्रतीक्षा में था। पुस्तक रखने से पहले अगर किसी को पता चल जाता तो गौतम को पक्का विश्वास था कि कमल नारायण सभी को बता सकता था और फिर इस सब में गौतम को ही सजा मिलना तय था।


शनिवार का दिन भी आ गया था। सारे विद्यार्थी आचार्यों के साथ प्रार्थना स्थल पर पहुंच गए थे। हवन-पूजन भी यहीं पर होने वाले थे। हवन के समय सभी विद्यार्थियों को वेदों की ऋचाओं के साथ-साथ गूढ़ मंत्रों और पूजा विधियों के बारे में पढ़ाया जाता था और आगे भविष्य में सभी विद्यार्थी वैदिक तरीके से पूजा पाठ कर सके और करवा सकें उनके लिए भी तैयार किया जाता था।


 सभी विद्यार्थी अपनी अपनी पुस्तकों के साथ अपने हवन कुंड के सामने बैठे थे। कमल नारायण, आत्मानंद, वैदिक और गौतम चारों एक ही हवन कुंड के चारों तरफ बैठे हुए थे। चारों ही दोस्त इस समय होने वाले हवन के लिए बहुत ज्यादा एक्साइटेड थे। बस गौतम के मन में हल्की सी घबराहट थी.. वह भी उस किताब के कारण। हालांकि वह पुस्तक अभी गौतम के पास नहीं थी। गौतम ने उसे यहां आने से पहले पानी के मटकों के नीचे अच्छे से छुपा दिया था ताकि गलती से भी वह किताब किसी के हाथ ना लग जाए।


 गौतम हवन के बीच में से उठ के वह किताब पुस्तकालय में वापस रखने वाला था। हवन के साथ ऋचाओं का पाठ शुरू हो गया था। सभी विद्यार्थी आचार्यों की देखरेख में ऋचाओं का पाठ कर रहे थे। सभी विद्यार्थियों का ध्यान मंत्र जाप में था। केवल गौतम ही पूरे समय वहां से उठकर जाने की ताक में था.. कब उसे मौका मिले और वह अपने काम को अंजाम दे सके।


 थोड़ी ही देर बाद गौतम ने पेट दर्द का बहाना करते हुए अपने आचार्य से कहा, "गुरुदेव मेरे पेट में भयंकर पीड़ा होने लगी है। मुझे लगता है कि मैं यहां पर नहीं बैठ पाऊंगा।"


 गौतम के चेहरे पर उसकी पीड़ा साफ साफ नजर आ रही थी। आचार्य ने भी गौतम को जाने की आज्ञा दे दी थी। कमल नारायण, आत्मानंद और वैदिक भी गौतम की हालत देखकर दुखी हो गए थे। वह तीनों भी गौतम की सहायता करने के लिए उसके साथ जाना चाहते थे। 


कमल नारायण ने आचार्य से कहा, "आचार्य..! गौतम को इस तरह अकेले भेजना उचित नहीं होगा। हो सकता है रास्ते में उसकी पीड़ा बढ़ जाए। कोई तो उस समय बातों का ध्यान रखने वाला होना चाहिए।"


 आचार्य इससे पहले उन्हें जाने की आज्ञा देते गौतम ने जल्दबाजी से कहा, "गुरुदेव..! मैं नहीं चाहता कि मेरे कारण मेरे मित्रों की हानि हो। यदि यह लोग मेरे साथ जाएंगे तो इनका पढ़ाई का नुकसान होगा।"


 फिर अपने दोस्तों की तरफ देखते हुए कहा, "तुम लोग चिंता मत करो। मुझे लगता है कि मैं थोड़ा सा टहल लूंगा तो शायद मेरे पेट का दर्द कम हो जाए।। मैं प्रयास करूंगा कि जल्दी ही मेरा पेट दर्द ठीक हो जाए तो मैं वापस यहां लौट आऊं। तुम लोग यहीं पर मेरी प्रतीक्षा करो।"


 कमल नारायण, आत्मानंद और वैदिक तीनों ही मन मार कर अपनी जगह बैठे रहे  गौतम ने मन ही मन भगवान को धन्यवाद दिया कि उसके तीनों मित्र वहीं रुकने के लिए मान गए थे। गौतम थके हुए कदमों से चलता हुआ वहां से बाहर निकल गया। प्रार्थना स्थल से थोड़ा दूर आने के बाद गौतम ने इधर उधर देखा जब गौतम को कोई दिखाई नहीं दिया तो वह सब की नजरें बचाते हुए तेज कदमों से चलकर पानी के मटके के पास गया और वहां से छुपाई हुई पुस्तक निकाल कर छुपते छुपाते पुस्तकालय पहुंचा।



 पुस्तकालय पहुंचकर वह यहां वहां घूमते हुए उस पुस्तक को छुपाने की ठीक जगह देखने लगा। हर एक जगह पर उसे ऐसा लग रहा था कि वहां रखने पर पुस्तक किसी को नहीं मिलेगी। पर उस किताब को तो ऐसी जगह रखना था.. जहां पर सबकी नजर ना पड़े.. साथ ही साथ बिना ढूंढे भी मिल जाए। हर एक जगह ढूंढने के बाद गौतम की नजर आचार्य के बैठने वाली गद्दी पर पड़ी। उसके आगे एक छोटी सी मेज रखी हुई थी.. जिस पर एक बड़ी सी पोथी रखी थी.. जिसमें पुस्तकालय से बाहर जाने वाली पुस्तकों का नाम और जिन विद्यार्थियों को वह पुस्तकें दी गई थी उनके नाम लिखे हुए थे।


 गौतम ने सबकी नजर बचाकर पुस्तक आचार्य की गद्दी के नीचे इस तरह रखी थी कि जरा सी भी इधर-उधर होने पर पुस्तक सबको दिखाई देने लगे। गौतम जानता था कि सब ने हर जगह पुस्तक को ढूंढा होगा.. केवल आचार्य की गद्दी और मेज के आसपास किसी का ध्यान नहीं गया होगा। इसीलिए यही सबसे उचित जगह थी.. पुस्तक को छुपाने की।



 पुस्तक को छुपाने के बाद गौतम ने पुस्तकालय से बाहर जाकर देखा.. जब उसे कोई भी दिखाई नहीं दिया तो गौतम दबे पांव बाहर निकल गया और धीरे धीरे चलता हुआ वापस अपने हवन कुंड के पास आकर बैठ गया। उसे वहां वापस आया देख आचार्य और उसके दोस्तों ने गौतम से पूछा, "अब तुम ठीक हो? बताओ अब तुम्हारा पेट दर्द कैसा है?"


 गौतम ने मुस्कुरा कर अपनी गर्दन हिलाई और कहा, "अब ठीक हूं! मैंने थोड़ा सा जल पिया और थोड़ा इधर उधर टहल लिया तो अब मैं थोड़ा अच्छा महसूस कर रहा हूं।"


 उसके बाद सभी अपने-अपने मंत्र जाप में व्यस्त हो गए। गौतम भी अब निश्चिंत होकर मंत्र जाप कर रहा था। हवन और मंत्र जाप के बाद प्रत्येक शनिवार को और पढ़ाई नहीं करवाई जाती थी  इसीलिए सभी विद्यार्थियों को वापस भेज दिया गया।



 अगले दिन और दिनों की तरह पढ़ाई लिखाई के साथ उस पुस्तक को भी ढूंढा जा रहा था। प्रधानाचार्य ने पुस्तकालय के अधीक्षक आचार्य से एक बार फिर जिन जिन विद्यार्थियों को पुस्तकें वितरित की गई थी.. उनकी सूची मांगी। पुस्तकालय अधीक्षक सूची बनाने के लिए पुस्तकालय में गए और जाकर अपनी गद्दी पर बैठ गए  और दिनों की अपेक्षा आज गद्दी पर बैठना उन्हें थोड़ा परेशान कर रहा था। बार-बार उन्हें लग रहा था कि कुछ तो ऐसा था.. जो अलग था।


 उन्होंने उठाकर देखा तो वही पुस्तक उनकी गद्दी के नीचे रखी हुई थी.. जिसे ढूंढने के लिए सभी ने पूरे गुरुकुल का एक-एक चप्पा छान मारा था। पुस्तक को ढूंढने के लिए सभी ने आकाश पाताल एक कर दिया था और वह पुस्तक वही पुस्तकालय में गद्दी के नीचे रखी हुई मिली। इस बात पर पुस्तकालय अधीक्षक ने भी ज्यादा ध्यान नहीं दिया और वह बहुत ज्यादा खुश होकर पुस्तक प्रधानाचार्य को दिखाने के लिए चले गए।



 पुस्तक के मिलने पर सभी ने राहत की सांस ली और वह भूल गए कि पुस्तक कहीं गायब हुई थी। किसी ने भी यह नहीं सोचा कि अचानक इस तरह पुस्तक कैसे मिली? वह सभी सोच रहे थे कि जैसे भी पुस्तक मिली हो.. बस मिल गई।



 अगले कुछ दिन गौतम ने शांति से गुजार दिए। उसने किसी को भी अभी तक यह नहीं बताया था कि वह किताब उसी के पास थी। थोड़े दिन भी जाने के बाद एक दिन गौतम ने सभी दोस्तों को इकट्ठा किया और कहा, "मुझे किसी काम में आप सभी की सहायता चाहिए।"


 आत्मानंद  वैदिक और कमल नारायण ने एक दूसरे  की तरफ असमंजस से देखते हुए पूछा, "सहायता..! कैसी सहायता?? और तुम्हें सहायता मांगने की क्या जरूरत पड़ गई?"


 गौतम ने मुस्कुराते हुए कहा, "मैंने कुछ दिन पहले एक पुस्तक पढ़ी थी। उस पुस्तक में बहुत से सिद्ध मंत्र थे। यदि हम उन मंत्रों का जाप करें तो हमें बहुत से गूढ़ ज्ञान प्राप्त हो सकते हैं।"


 "कैसी पुस्तक? तुम्हें कहां मिली? और तुमने मुझे क्यों नहीं दिखाई?" कमल नारायण ने अधीर होते हुए पूछा। 


गौतम ने शांति से कहा, "बस ऐसे ही.. पिताश्री पढ़ रहे थे.. मैंने देखी तो मुझे उसकी कुछ विधियां और प्रयोग अच्छे लगे। अगर तुम लोग मेरी सहायता करो तो हम उन विधियों का प्रयोग करते हुए बहुत से गूढ़ रहस्यों से पर्दा उठा सकते हैं।"


 वैदिक और आत्मानंद तो गौतम के कहते ही तैयार हो गए थे। कमल नारायण को गौतम की बात पर थोड़ा संदेह था। कमल नारायण समझ नहीं पा रहा था कि अचानक से गौतम के मन में यह बात कैसे आ गई पर फिर भी कोई ठोस वजह नहीं मिल रही थी.. जिसके कारण कमल नारायण गौतम को मना करें। सभी दोस्तों ने गौतम की बात मान ली थी।



 शनिवार की रात का समय निश्चित हुआ था.. जब गौतम उस किताब में लिखी विधियों को सबके साथ पढ़ने वाला था। हर विधि को करने का एक निश्चित समय और मुहूर्त निर्धारित था। हर विधि को उसके निर्धारित मुहूर्त पर ही किया जा सकता था। तभी वह फफलदायी होती.. नहीं तो उनके उल्टे पड़ने के भी आसार थे।


 चारों दोस्तों ने गौतम की नकल की हुई पुस्तक को पढ़कर हर एक विधि का प्रयोग करने का मन बना लिया था। कमल नारायण को थोड़ा सा शक था। वह भी उस किताब को पढ़ने के बाद चला गया था। गौतम ने किताब की लिखी हुई हर एक बात को नकल किया था। कुछ छोटी मोटी बातें थी.. जिन्हें गौतम ने जानबूझकर नजरअंदाज कर दिया था। 


 सबसे पहले उन्होंने सबसे हल्का प्रयोग किया। प्रयोग से वह लोग सम्मोहन करना सीख रहे थे। उस प्रयोग को करने के लिए शुक्रवार की रात्रि और उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र होना अनिवार्य था। आत्मानंद के पिता गुरुकुल में आचार्य थे.. सभी बच्चे ज्योतिष शास्त्र भी पढ़ रहे थे। कुछ अपना ज्ञान और कुछ आत्मानंद ने अपने पिता की सहायता से शुक्रवार की रात्रि को उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र किस दिन था.. उसका पता लगा लिया था।


 15 दिन बाद शुक्रवार था.. उसी दिन मध्यरात्रि में उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र भी आने वाला था। सभी दोस्तों ने मिलकर उस किताब में लिखी विधि के अनुसार सभी पूजन सामग्री इकट्ठा कर ली थी और साथ ही में जो भी और चीज में काम में आने वाली थी.. सारी इकट्ठे कर ली थी। उस दिन आत्मानंद के पिताजी को किसी विशेष काम से बाहर जाना था तो सभी ने मिलकर आत्मानंद के घर पर उस प्रयोग को करने का मन बना लिया था।



 सभी दोस्त रात को आत्मानंद के घर पर इकट्ठा हुए और जैसे-जैसे किताब में लिखा था.. वैसे वैसे यंत्र.. मंत्र का निर्माण करके उस विधि को पूरा किया। विधि के पूरा होते ही अगले दिन सभी दोस्तों ने मिलकर अपनी सम्मोहन विद्या का परीक्षण करने का ठान लिया और गुरुकुल में पढ़ने वाले एक सीधे से बालक पर उस विद्या का परीक्षण भी किया। 


 जैसा जैसा गौतम उस बच्चे को कहता जा रहा था.. वह बच्चा बिल्कुल वैसे ही करता जा रहा था। यह सब देख कर गौतम के साथ-साथ आत्मानंद, वैदिक और कमल नारायण भी खुश हो गए थे। आगे की विधियों के बारे में उनके मन में जो शक था.. वह भी दूर हो गया था। 


एक-एक करके पांच विधियां वह सभी सीख चुके थे। सम्मोहन, उच्चाटन जैसी 5 भयंकर विधियां उन्होंने खेल खेल में सीख ली थी। उन से क्या-क्या नुकसान हो सकते थे? उसके बारे में चारों बच्चे ही अनजान थे। वह चारों तो बस इसे एक खेल समझ कर खेल रहे थे पर यह खेल नहीं था। यह तंत्र शास्त्र की कुछ गुप्त विद्याएं थी.. जिन्हें सीखना और उनका प्रयोग किसी महान गुरु के सानिध्य में ही करना चाहिए था।



 धीरे धीरे वह चारों बच्चे बड़े होते जा रहे थे। हर एक विधि सीखने में उन्हें समय लग रहा था। क्योंकि जिस तरह के ग्रह नक्षत्र की स्थितियाँ.. उन विद्याओं को सीखने के लिए चाहिए होती थी वह रोज रोज तो आती नहीं थी। कुछ स्थितियां 15 दिन बाद तो किसी विधि के करने के लिए महीनों इंतजार कर रहे थे। किताब में लिखी हुई लगभग सभी विधियां वह चारों प्रयोग कर चुके थे। अंत में केवल एक ही विधि बाकी थी..


 "आयाम  द्वार..!!!""

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3 Comments

Punam verma

27-Mar-2022 05:23 PM

हर भाग अलग ही रोमांच कारी है

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रतन कुमार

04-Feb-2022 02:20 AM

Are wah naya part a bhi gya bahut intazar karaya me apne itne dono bad agay part ayega to log kahani bhi bhul jayege mam ab agla pat kbtk ayega itne hi dino bad ky 🤔🤔

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Aalhadini

05-Feb-2022 01:50 PM

Bilkul nhi... jldi hi sare parts upload krna start krungi.. kai baar likha tha ise pr kuch thik nhi lg rhi thi.. isiliye upload nhi ki thi. Deri k liye kshama🙏

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